इसी कालपी धाम में जगतजननी जगदंबा कालविनाशिनी सर्वसिद्धिदात्री माँ वनखंडी देवी की प्रेरणा एवं उन्ही की कृपा से मृत्युंजय लोक की स्थापना हुई है यह मृत्युंजय लोक अपनी तरह का संसार में अकेला है इस मृत्युंजय लोक में भगवान सदाशिव का अकालमृत्यु का हरण करने वाला विग्रह स्थापित है यह वह विग्रह है जिसका महामृत्युंजय मंत्र का जप करते समय ध्यान किया जाता है महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते समय भगवान सदाशिव के जिस स्वरूप का ध्यान किया जाता है वह स्वरूप अपनें आप में ही अति विशिष्ट है मंत्र के ध्यान के अनुसार भगवान मृत्युंजय 2 घड़ों से स्वयं का अभिषेक कर रहे हैं एवं दो घड़े उनके गोद में हैं। इन घटों में अमृत भरा हुआ है
मंत्र जप के समय ये भावना रहती है कि भगवान मृत्युंजय जिन अमृत घटों से अपना अभिषेक कर रहे हैं उनकी अमृत बूंदें जिनके लिए जप किया जा रहा है या जो स्वयं अपनें लिए जप कर रहे हैं उन तक पहुँचकर उन्हे जीवन प्रदान कर रही है
मंत्र जप करने वाले की इस भावना के आधार पर सृष्टि के कण-2 में व्याप्त परमात्मा के मृत्युंजय स्वरूप के प्रसन्न होनें के कारण जप का प्रभाव व्यक्ति पर पड़ने लगता है किसी भी मंत्र का जप करते समय मंत्र के देवता के स्वरूप का ध्यान करते रहने से मंत्र के जप का प्रभाव बढ़ जाता है ।माता पार्वती सहित कमल आसन पर विराजमान भगवान मृत्युंजय के अगल बगल स्वामी कार्तिकेय एवं सर्व विघ्नहर्ता प्रथम पूज्य भगवान गणपति भी विराजमान हैं।भगवान मृत्युंजय एवं माँ पार्वती के ठीक सामने भगवान नर्मदेश्वर प्रतिष्ठित हैं ….