कालपी एक ऐतिहासिक और पवित्र नगरी ! ये वह नगरी है जहां पर जहां पर भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा ली थी , जहां पर महर्षि वेद व्यास ने जन्म लिया था महर्षि वेद व्यास ने ही महाभारत की रचना की थी , ये भगवान सूर्य की प्रिय नगरी भी रही है , यही वह स्थान है जहां पर माँ वनखंडी ने दैत्यराज महिशासुर का वध करके यहीं प्रतिस्थित हुई थी कभी यहाँ पर एक विशाल सूर्य मंदिर भी था कालपी का इतिहास बहुत पुराना है यहा आज भी पवित्र जमुना नदी बहती है यहाँ पर कई मंदिर है जिनमे से एक व्यास मंदिर जो कि देखने मे बहुत ही सुंदर है और यहाँ दूर दूर से लोग इस मंदिर मे दर्शन के लिए आते है ये मंदिर उसी स्थान पर बना हुआ है जहां पर महर्षि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था और यहीं पर माँ वनखंडी का पवित्र मंदिर है जहां पर श्रद्धालु बहुत अधिक मात्र मे दर्शन के लिए जाते हैं कहा जाता है यहा जो भी कुछ मांगता है उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है माँ के पावन मंदिर मे सभी भक्तों को शांति कि अनुभूति होती है और यहाँ मा के मंदिर मे आकर व्यक्ति अपनी सारी परेशानियों को भूल जाता है । माँ वनखंडी देवी शक्तिपीठ मे ही भगवान मृत्युंजय का भी एक मंदिर है जो अपने मे आप मे एक है जिसकी शोभा अतुलनीय है भगवान मृत्युंजय मृत्यु को हरने वाले हैं ।
भगवान विष्णु की परमप्रिय नगरी होनें के कारण जहाँ पर भगवान विष्णु नें अपने सहित सभी अवतारों एवं सृष्टि के समस्त क्रियाकलापों को बतलाने समझाने हेतु वेदव्यास के रूप में प्रकट किया I
भगवान सूर्य जिसे अपनी परमप्रिय नगरी बताते हैं एवं इसी कारण सूर्य उपासना के पश्चात श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को उसका कुष्ठ रोग दूर होनें के पश्चात जहाँ-जहाँ पर अपनें मंदिर के निर्माण का निर्देश दिया उनमें से एक स्थान
भगवान सूर्य द्वारा निर्देशित तीन सूर्य मंदिरों मे से जहाँ कभी सबसे बड़ा सूर्य मंदिर था
कृष्ण प्रिया एवं यम की बहन यमुना जहाँ किलोल करती है
गंगा एवं शांतनु पुत्र सत्यव्रत जहाँ भीषण प्रतिज्ञा करने के पश्चात भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए
वह स्थान जहाँ पर अज्ञातवास के समय पांडवों ने कुछ समय बिताया
वह स्थान जहाँ पर गुरु द्रोणाचार्य जी कुछ समय के लिए रहे एवं शिवलिंग की स्थापना की
विभिन्न पौराणिक एवं ऐतिहासिक घटनाओं का जो साक्षी है उस स्थान का नाम है कालपी धाम
यह कालपी धाम अपनें में कई ऐतिहासिक एवं पौराणिक गाथाओं का साक्षी है
इसी कालपी धाम में जगतजननी जगदंबा कालविनाशिनी सर्वसिद्धिदात्री माँ वनखंडी देवी की प्रेरणा एवं उन्ही की कृपा से मृत्युंजय लोक की स्थापना हुई है
यह मृत्युंजय लोक अपनी तरह का संसार में अकेला है